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नाद

 

नाद

नाद भक्ति सागर के अनुसार - पहिले नाद सुने जो ऐसा चिड़ि चिकला बोले जैसा। एकहि बार कहे जो चिन्न दुसरी बार कहै चिन-चिन।। क्षुद्रघंट जो तिजी जानो चौथी नाद शंख पहिचानो।  पांचवी नाद वी ज्यों गाजे छठवीं उपज ताल जो बाजे।।  सातवीं नाद मुरलिया जैसी आठवीं उठे पखावज जैसी।

नवें नफीरी नाद सुनावै दसमें सिंह गरजन उपजावै।। नौ तजि दशवें सुहित लावै अनहद सुनि अनहद होई जावै। होय जीव जो ब्रम्ह अगाधा जो कोई सुने सु अनहद नादा।।

ब्रम्हांड की सृष्टि शब्द के उपर स्थित है अर्थात् शब्दों के उपर ही विभिन्न जीव, जन्तु सभी की सृष्टि हुई है। योगशास्त्र में इन शब्दों को नाद के नाम से जाना है।

योगशास्त्र का मत है कि नाद एक अंतरध्वनि है जो कि 24 घंटे होती रहती है। शास्त्रें काभी मत है कि नाद से ही सृष्टि और नाद से ही लय होता है।

नाद सुनने का तरीका -

1- पूर्व या उत्तर दिशा में साधक को अपने अभ्यस्थ आसन में स्थित होकर ऑंख और कान बंद करके श्वास का पूरक करना चाहिए। श्वास का पूरक करने के पश्चात् कुंभक की स्थिति में दाएं कान से नाद सुनने का प्रयत्न करना चाहिए। 2- हाथ के दोनों अंगुठों से दोनों कर्ण छिद्र दोनों तर्जनी अंगुलियों से दोनों आंखें दोनों मध्यमा अंगुलियों से नासारंध्र। अंगुली से बंद करके साधक को नाद सुनने का अभ्यास करना चाहिए। यानि कर्ण शक्ति विकासक क्रिया।  3- मंत्र और जप के अधिक अभ्यास करने से भी नाद प्रकट होने लगता है। 4- ध्यान के अभ्यासी को भी नाद सुनाई देता है।  5- आसन (सिद्वासन, पदमासन) के सिद्व हो जाने पर भी नाद सुनाई देता है।  6- एकांतवास के कारण भी कभी-कभी नाद सुनाई देता है। 7-  वैराग्य की अवस्था में भी नाद सुनाई देता है।  8- पूर्व जन्म के संस्कार से भी नाद सुनाई देता है।  9-                त्रटक के निरंतर अभ्यास से भी नाद सुनाई देता है। जब नाद सुनाई देता है तो आरंभ में इसकी गति तीव्र होती है लेकिन धीरे-धीरे गति में कमी आ जाती है। नाद के समान मन को लय करने वाला कोई वाद्य यंत्र नहीं है।

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