मोक्ष
मन एवं
मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयो। बन्धाय विषयासत्तं मुक्ते निविशय समृतम्।।
अर्थात् मनुष्य
ही मोक्ष एवं बंधन का कारण है जब मन विषय की ओर आशक्त होता है तो बंधन और जब मन
विषयों से दूर भागता है अथवा विषयों से मुक्त हो जाता है तो मोक्ष की प्राप्ति
होती है। मानव शरी से कर्म की उत्पति होती है और कर्मों से ही शरीर का प्रादुर्भाव
होता है। फिर शरीर से कर्म की उत्पति और कर्म से शरीर की उत्पति इस प्रकार यह क्रम
चलता रहता है। जिस प्रकार घड़ी की सूईयां चलती रहती है उसी प्रकार यह कर्म और कर्म
से उत्पति का क्रम चलता रहता है। अथवा जन्म मृत्यु का चक्र चलता रहता है। जन्म
मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा लेना ही मोक्ष है। इस जन्म मृत्यु चक्र से मुक्ति
पाने का उपाय एकमात्र योग में ही संभव है। मोक्ष चार प्रकार के हैं- 1- सालोक्य 2- सामित्य 3- सारूप्य 4- सायुज्य
1- सालोक्य - इससे मुक्त प्राणी ईश्वर के लोक में रहता है।
2- सामित्य - इससे मुक्त प्राणी ईश्वर के लोक में न रहकर उसके
समीप रहता है।
3- सारूप्य - इसमें मुक्त प्राणी ईश्वर के स्वरूप को पा लेता
है।
4- सायुज्य - इसमें मुक्त प्राणी हमेशा के लिए
जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
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