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नाभि परीक्षा

 

नाभि परीक्षा 

 

शरीर का अध्ययन हम उनके कुछ प्रमुख भागों में कर सकते है। ज्ैासे - मस्तिष्क, ह्रदय, नाभि इत्यादि। शरीर में नाभि का बहुत महत्व है। शरीर रुपी मशीन का हर ऊर्जा अपना कार्य ठीक से करे, नस नाडियंॉ रुपी कार्य जो 72 हजार के लगभग सारे शरीर में फैले हुए हैं अपना कार्य ठीक से सम्पादित करें और उनका नियंत्रण ठीक रहे। ये सब नाभि के ही कार्य है। भक्ति सागर ग्रंथ में चरण दास ने नाभि का उल्लेख इस प्रकार किया है।

72864 (बहतर हजार आठ सौ चौसठ)नाड़ी सबकी जड़ है नाभि मसाज। शरीर के अंग-प्रत्यंग तथा नस-नाड़ियां अपना-अपना महत्व रखते है इसी प्रकार शरीर को स्वस्थ और सुदृढ़ बनाए रखने के लिए नाभि का एक महत्वपुर्ण स्थान है अगर नाभि में तनिक भी खराबी आ जाए तो उससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और शरीर में अनेकों बिमारियां आ जाती है। प्रायः 90 प्रतिशत नर-नारी, बाल-बृद्वों के नाड़ी अपने स्थान से टली रहती है। इसके फलस्वरुप उदर संबंधि अनेकों प्रकार के रोगों से पिड़ित होने के साथ साथ मानसिक तनाव और मानसिक विकृति भी देखने को मिलती है। इसलिए यह आवश्यक है कि नाभि की जानकारी करें कि नाभि कहां और कैसे चलती है। आयुर्वेद ग्रंथ में लिखा है - सर्वरोगा मलाश्रयाः।

नाभि टल जाने के कारण --- 

       प्रायः देखा गया है कि बाल्यावस्था में ही अनेेक कारणों से नाभि खराब हो जाती हैै। खेल-कूद करते समय, सीढ़ी से उतरते समय, अत्यधिक कार्य करने पर, भारी समान उठाने या एक हाथ से अथवा दोनों हाथों से अत्यधिक बोझ उठाने पर नाभि उपर की ओर चढ़ जाती है। दाएं-बाएं तिरछी नाभि टलने का एकमात्र यहीं कारण है कि एक पैर पर ही अकस्मात भार अथवा झटका पड़ जाता है। यह अधिक कुदने से होता है। यदि बाएं पैर पर जोर या झटका पड़ता है तो नाभि पर नाभि बायीं ओर टल जाती है। प्रायः पुरुषों की नाभि बायीं ओर और स्त्रियों की नाभि दायीं तरफ बता सकते हैं।

नाभि परीक्षण - जिसकी नाभी टली हो उसको पहलेे उतानपादासन लगवाएं, जिससे नाभी की धडकन साफ सुनाई देती है। अगर नाभि की धड़कन सेंटर में है तो नाभी ठीक है। नाभि अधिकतर उपर या नीचे की ओर टली हुई होती है। पेट बड़ा होने के कारण भी नाभि की ध्वनि सुनाई देती है। इसके लिए धागे से नापा जाता है।

                नाभि परीक्षण पुरुषों के लिए - जिसकी नाभि टली हो उसको उतानपादासन करवायें। तत्पश्चात सिर और पैरों को नीचे लिटा दें। परीक्षक को रोगी के दाहिनी ओर कागासन में बैठा जाता है। फिर एक धागा लेकर उसका एक सिरा परीक्षक उसकी नाभी पर और दुसरा सिरा उसकी स्तन की कर्णिका घुंडी( चेस्ट) पर रखते हैं। तत्पश्चात नाभि चक्र पर हाथ स्थिर रखते हुए ही दुसरे सिरे को पुनः स्तन की दुसरी कर्णिका घुंडी पर (निप्पल की ठुडी पर) रखें। यदि दोनों धागों में अंतर समान ही है तो समझ लें कि नाभि ठीक है।

स्त्रियों की नाभि परीक्षा -  स्त्रियों की नाभि को नापने के लिए लंबे धागे की आवश्यकता है। उतानपादासन लगाने के बाद श्वासन में लिटाकर दोनों पांव की पैरों एड़ियों को आपस में मिलाते हुए पंजों को फैला दें, तत्पश्चात एक धागा लेकर नाभि चक्र की घुंडी पर रखते हुए दुसरे सिरे को बाएं पांव के अंगुठे पर ले जाएं फिर उसी सिरे को उसी स्थान से पकड़े हुए दाएं पांव के अंगुठे पर ले जाएं। यदि दोनों अंगुठों के माप में कम या ज्यादा हो तो समझिए कि नाभि टली हुई है। अगर धागे का अंतर करते समय दुसरे अंगुठे के बीचो बीच आ जाता है तो अंगुठा नीचे की ओर चली गई है और आगे की ओर धागा बढ़ जाता है तो नाभि नीचे चली गई है। और धागा घट जाता है तो नाभि उपर चली गई है।

नाभि परीक्षण स्त्री पुरुष दोनों के लिए - नर या नारी को सर्वप्रथम श्वासन में लिटा देते हैं। परीक्षक (जांच करने वाले को) को रोगी की दायीं तरफ कागासन में बैठना चाहिए। फिर दाहिने हाथ की पांचों अंगुलियों को मिलाते हुए अग्रभाग को नाभि मंडल पर इस प्रकार रखें कि धड़कन सुनाई दे। अगर नाभि मंडल पर ह्रदय की धड़कन सुनाई दे तो समझिए की नाभि ठीक है। और अगर दाएं-बाएं, उपर-नीचे चल रही हो तो समझना चाहिए की नाभी खराब है।

नाभि ठीक करने की विधि -

उतानपादासन, उष्ट्रासन, चक्रासन, मत्स्यासन करें।

1-            इसमें दाएं पांव को दबाकर बाएं पांव और अंगुठे को दोनों हाथों से पकड़कर इस प्रकार झटका देना है कि उपर टली हुई नाभि अपने स्थान पर आ जाए।

2-            इसमें दाएं पांव को दबाकर बाएं पांव के तलुए में परीक्षक को अपने हाथ से इस प्रकार धक्का देना है कि नाभि अपने स्थान पर आ जाए।

3-            इसमें परीक्षक रोगी की कमर पर अपना दाहिना पैर रखकर रोगी के बाएं हाथ और दाहिने पैर को पकड़कर इस प्रकार खींचना है जैसे धनुष पर वाण चढ़ाकर खींचते हैं।

4-            इसमें रेागी अपने पांव को इस प्रकार पकडे़ जैसे उष्ट्रासन में पकड़ते हैं। परीक्षक अपने पैरों के बीच में रोगी को लेकर इस प्रकार उठावें की पृथ्वी से शरीर का सारा भाग उपर उठ जाए।

                                अगर किसी की नाभि खराब(टली)हो तो उसे पहले शवासन में लिटाएं। फिर परीक्षक उतानपादासन करवाएं। फिर तेल लेकर नाभि पर इस प्रकार मालिश करें कि टली हुई नाभि केन्द्र में आ जाए।

                                यदि नाभि बाईं ओर उपर की चढ़ी हो तो रोगी के दाएं पैर को दबाकर बाएं पैर को पकड़कर झटका दें और दाएं पैर को पकड़कर एड़ी के पास तलवे मेें हथेली का धक्का दें। यदि नाभि दायीं ओर उपर की टली हुई हो तो यहीं दोनों क्रियाएं उल्टे ढं़ग से करें। यदि फिर भी ठीक न हो तो पेट के बल लिटाकर परीक्षक उसके दाएं हाथ और बाएं पैर को पकड़कर अपना दायां पांव उसके कमर पर रखें। फिर धीरे धीरे दोनों हाथों से इस प्रकार उपर की तरफ खींचे जैसे धनुष पर वाण चढ़ाकर खींचा जाता है। फिर दुसरा हाथ तथा दुसरा पांव पकड़कर वैसा ही करें। यदि नापने पर फिर भी नाभि में फर्क मालुम पड़े तो रोगी उष्ट्रासन करें। अैार परीक्षक अपने दोनों पावों के बीच में रोगी को लेकर उपर की तरफ उठाएं। अगर मरीज की नाभि उपर की ओर सीधा में हो तो उसके लिए अन्य ढंग अपनाना चाहिए। परीक्षक को चाहिए कि रोगी को शवासन में लिटाकर दोनों हाथ बांध दें फिर रोगी को अपने दोनों पांवों के बीच मिलाकर उठाएं कि रोगी उपर की तरफ उठ जाए। इसके अतिरिक्त मालिश से भी नाभि को यथास्थान पर लाया जा सकता है। उतानपादासन और उष्ट्रासन करवाना चाहिए।

उपर टली नाभि ठीक करने की विधि - रोगी को अपने हाथों को आपस में बांधाकर शवासन में लेट जाएं। परीक्षक रोगी को अपने दोनों पांवों के बीच में लेकर घुटनों को पकड़कर इस प्रकार उठाना है कि रोगी के पांवों से सिर का भाग किंचित ऊंचा रहे।

विकृत नाभि से उत्पन्न रोग - नाभि के टल जाने की दिशा के अनुसार ही शरीर में भी अनेक रोग उत्पन्न हो जाते है। यदि किसी की नाभि उपर की ओर हो जाती है तो गैस, कब्ज का बनना, ह्रदय, दिल की धड़कन, घबराहट आदि रोग हो जाती है। यदि नाभि नीचे की ओर टल जाए तो कब्ज, स्वप्नदोष, पेट में गड़गड़ाहट की आवाज सुनाई देती है, पेट में दर्द होता है। यदि नाभि बायीं की तरफ टल जाए तो बाल का झड़ना, ल्यूकोरिया आदि रोग होना समझिए।

सावधानियां - नाभि को शाम के समय कभी कभी नहीं देखना चाहिए। सुबह खाली पेट देखना चाहिए। कागासन में बैठकर सेव (छिलका उतारकर), हलवा, बिस्कुट, हल्का भोजन देना चाहिए।

स्वयं नाभि ठीक करने की विधि -  यदि कोई नाभि विशेषज्ञ न मिले तो स्वयं ही आसनों के द्वारा भी नाभि ठीक कर सकते हैं। इसके लिए सर्वप्रथम उतानपादासन करें। फिर उष्ट्रासन करें। फिर चक्रासन करें। फिर मत्स्यासन करें। परन्तु यदि किसी की नाभी बहुत खराब हो गई हो तो पहले किसी योग्य नाभि के जानकार द्वारा नाभि ठीक करा लें। तत्पश्चात यदि वह उपयुक्त आसनों का निरंतर अभ्यास करेगा तो जीवन पर्यन्त कभी नाभि नहीं टलेगी।

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