चक्र
आधारे लिंगे नाभौ
प्रकटत ”दय तालमूले ललाटे।
द्वे पत्रे
सोडसारे द्वि दश दशं दले द्वादशाहर्दे चतुस्के।।
वासन्ते बालमध्ये
डफ कंठ सहिते कंठ देशे स्वराणां।
हं क्षं त्वदार्थ युक्तं सकल बल गतं वर्ण रस
नमानि।।
चक्रों के नाम पंखुड़ियों की संख्या स्थान
मूलाधार चक्र चार लिंग
स्वादिष्ठान चक्र
छः उपस्थ
मणिपुरक चक्र दस नाभि
अनाहद चक्र बारह ”दय
विशुद्वि चक्र सोलह तालूमूल
आज्ञा चक्र दो पंखुड़ी ललाट के दोनों भौवों
शून्य चक्र
अर्थात्
सर्वप्रथम चक्र मूलाधार चक्र लिंग स्थान में है। अर्थात् उपस्थ में स्वादिष्ठान और
नाभि में मणिपुरक चक्र का स्थान बताया गया है। ”दय के अंदर अनाहद चक्र है और तालूूमूल में
विशुद्व चक्र है, ललाट के दोनों भौवों के बीच में आज्ञा चक्र है। इन चक्रों
के या कमलों के पंखुडियों की संख्या इस प्रकार है।
मूलाधार चक्र - व, ष, श, स तीनों ष
स्वादिष्ठान चक्र
- ब, भ, म, य, र, ल
मणिपुरक चक्र -ड, ढ़, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ
अनाहद चक्र - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ओ, औ, ए, ऐ, अं, अः
विशुद्वि चक्र -
क, ख, ग, घ, ड-, च, छ, ज, झ, ण, ट, ठ
आज्ञा चक्र - हं, क्षं
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