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कुंजल

 

कुंजल -


कुंजल को गजकरणी और वमन धोती भी कहा जाता है। देखने में यह कठिन और कई लोगों को थोड़ी डरावनी सी लगती है, मगर ये बेहद आसान है। चंद दिनों के अभ्यास के बाद बेहद सरल लगने लगती है। इसका मुख्य काम है सफाई करना। इस क्रिया की तकनीक एक बार सीख लेंगे तो जीवनभर आपके काम आएगी।

इन दिनों तमाम लोग योग को अपना रहे हैं। लेकिन देश में अच्छे योग गुरुओं की कमी अभी भी है। हम ज्यादातर ज्ञान इंटरनेट से बटोर रहे हैं। कुंजल क्रिया के बारे में लोग इंटरनेट पर कुछ इस तरह से सर्च करते हैं,

कुंजल क्रिया करने का सही तरीका

कैसे करें कुंजल क्रिया

गजकरणी करने का सही तरीका

वमन धोती करने का सही तरीका

वमन धोती के लाभ

हम रोजाना शौच जाते हैं और ब्रश भी करते हैं, मगर शरीर के भीतर जमा कफ वगैरह की सफाई नहीं करते। यह क्रिया यही काम करती है। इसका फायदा आपको क्रिया करने के तुरंत बाद महसूस होने लगेगा। सभी अच्छे योगी आसन करने से पहले वमन धोती करते हैं। ये यौगिक प्रोटोकॉल का अहम हिस्सा है।


क्या है कुंजल

योग में शरीर के भीतरी अंगों की सफाई के लिए षटकर्म का प्रावधान है। षटकर्म  यानी छह क्रियाएं। इनमें नेती, धोती, बस्ती, नौली, त्राटक और कपालभाति शामिल हैं। धोती का मतलब दरअसल धोना है। धोने के कई तरीके हैं तो उन्हीं में से एक तरीका है वमन धोती जिसे कुंजल तथा गजकरणी भी कहा जाता है।


कैसे की जाती है कुंजल क्रिया


यह क्रिया सुबह के समय ही की जाती है। जरूरत पड़ने पर यह क्रिया दिन में कभी भी की जा सकती है। लेकिन उसके बारे में आगे बात करेंगे। पहले सुबह की जाने वाली क्रिया की बात करते हैं। इसके लिए सबसे पहले सुबह फ्रेश हों और ब्रश कर लें।


आपको दो लीटर वाले एक जग और बाल्टी की जरूरत होगी। शॉर्ट्स पहन लें और करीब दो लीटर गर्म पानी रखें। पानी इतना गर्म हो कि आप सहन कर सकें।


अब कागासन की मुद्रा में बैठ जाएं और जग में पानी धीरे-धीरे पीते जाएं। कई लोग आराम से दो लीटर पानी पी जाते हैं मगर कुछ लोग एक लीटर में ही बस बोल देते हैं।


आपको तब तक पानी पीते रहना है जब तक उल्टी जैसा महसूस न होने लगे। जब उल्टी जैसा महसूस होने लगे तो जरा रुकें और मन को हल्का करें। फिर पानी पिएं।


वो समय अपने आप आ जाएगा, जब उल्टी करने की इच्छा प्रबल हो जाएगी। ऐसे में हड़बड़ाएं या घबराएं नहीं। शांति से खड़े हो जाएं। दोनों पैर मिला लें और उन्हें सीधे रखते हुए कमर और पैरों के बीच 90 डिग्री का कोण बनाते हुए झुक जाएं।


सामने आप बाल्टी रख सकते हैं या मिट्‌टी में भी यह क्रिया कर सकते हैं। योग संस्थानों में तो इसके लिए अलग से हौद बना होता है।


इस तरह करें शुरुआत


बायां हाथ पेट पर रख लें। सबसे छोटी अंगुली को अंगूठे से दबा लें और तीनों अंगुलियों (तर्जनी, मध्यमा और अनामिका) को मुंह के अंदर ले जाएं और उससे जीभ के सबसे पिछले भाग को सहलाएं। ऐसा करते ही आपको उल्टी होने लगेगी। जैसे ही ऐसा हो अंगुलियां बाहर निकाल लें और पानी को धार बनकर गिरने दें।

अपनी अंगुलियों की स्थिति को वैसे ही रखें मुंह के पास रखें, जैसे ही पानी आना बंद हो फिर अंगुलियों को मुंह के भीतर ले जाकर जीभ के पिछले हिस्से पर आगे-पीछे करते हुए सहलाएं।

धार बनाकर पानी निकालें 

जब आप जीभ को सहलाएंगे तो उसके कुछ ही क्षण बाद आपको उल्टी होने लगेगी। ध्यान रखें हमें झटके से उल्टियां नहीं करनी हैं बल्कि धार बनाकर पानी को गिरने देना है। पहली बार करेंगे तो थोड़ा कष्ट होगा, मगर दिमाग में इतना बसाए रखें कि आपके आमाशय की सफाई हो रही है।

ऐसा वक्त आएगा जब खट्‌टा व कड़वा पानी बाहर निकलेगा। जब ऐसा हो जाए तो समझें आपका काम 99 फीसदी पूरा हो गया। अब एक बार फिर एक गिलास गर्म पानी पिएं और उसी प्रकार बाहर निकालें। ये ठीक वैसे ही है जैसे साबुन से बर्तन धोने के बाद हम आखिर में थोड़ा पानी चला देते हैं। शुरुआत में कई लोगों से पूरा पानी नहीं निकल पाता है। ऐसा न हो तो परेशान होने की जरूरत नहीं है।

क्या है इसका विज्ञान
इस क्रिया को बहुत ही वैज्ञानिक ढंग से बनाया गया है। इसका मकसद खासतौर पर आपकी खाने की नली और आमाशय की सफाई करना है। गर्म पानी से अच्छी सफाई होती है, इसलिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। गर्म पानी आपकी खाने की नली और आमाशय में जमी चिकनाई युक्त गंदगी को साफ करता है। यह क्रिया रोज की जा सकती है। जो पानी आप पीते हैं वह आमाशय तक ही रहता है। आंतों में इसका बहुत कम अंश जा पाता है क्योंकि तब तक आप वमन धोती कर चुके होते हैं।

सुबह के अलावा भी कर सकते हैं
वैसे तो इस क्रिया को करने का सबसे अच्छा समय सुबह है, मगर कुछ परिस्थितियों में आप इसे कभी भी कर सकते हैं। जैसे : अगर अपच और बहुत खट्‌टी ढकारें आ रही हों। कुछ खा लेने के बाद बेचैनी महसूस हो रही हो तो भी आप इसे कर सकते हैं। इस क्रिया को करने पर कई बार बिना पचा हुआ अन्न भी बाहर आता है। ऐसा हो तो घबराने की जरूरत नहीं है।

इन रोगों से मुक्ति मिलती है
कुंजल बहुत फायदेमंद कर्म है। इसे हर उम्र के लोग कर सकते हैं। आज की लाइफ स्टाइल में हम कई बार इतना गलत खाते हैं, जिसकी वजह से हमारे आमाश्य में गंदगी का ढेर लग जाता है। कुंजल इसकी बेहतरीन तरीके से सफाई करती है।

इस क्रिया को नियमित रूप से करने से कई तरह के रोग पास नहीं फटकते। इनमें चेहरे पर होने वाले फोड़े-फुंसियां, दांतों के रोग, जीभ तथा आंखों के रोग, दिल की बीमारी, रक्त विकार, कब्ज, वक्ष स्थल के रोग, पित्त, कफ प्रकोप, खांसी, दमा, भूख कम लगना, मुंह सूखना, टॉन्सिल, खट्‌टी ढकारें आना शामिल हैं।

कुंजल करते वक्त क्या सावधानी बरतें
पानी बहुत गर्म नहीं होना चाहिए, हालांकि इतना गर्म हो कि आप सह सकें। ठंडे पानी से कुंजल नहीं किया जाता।
क्रिया करने वक्त शरीर को बहुत ऊपर-नीचे नहीं करना चाहिए। 
संयम से काम लें। इसे करते वक्त शुरू में कई लोग हड़बड़ी करते हैं। ध्यान रखें आपके शरीर में पानी ही गया है, वह रह भी जाएगा तो कोई नुकसान नहीं होगा।
वमन करते वक्त पेट पर बहुत जोर नहीं देना है। अपने बाएं हाथ से पेट को सहारा दिए रहें।
बिल्कुल सीधे खड़े होकर या बैठकर यह क्रिया कभी न करें। 
कुंजल करने के तुरंत बाद नहाना नहीं चाहिए। या तो आप इस क्रिया से पहले नहा लें या फिर कुंजल करने के कम से कम ढाई घंटे बाद स्नान करें।
कुंजल करने के बाद चेहरा नहीं धोना चाहिए, इससे चेहरा सूज सकता है।
इसे करने का सबसे सही समय सूर्योदय ही है। इसे आप रोज कर सकते हैं।

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