सूर्य
नमस्कार
- ओम भास्कराय बिदमहे महातेजाय धिामही तंडो सूर्य
प्रचोदयात।
सूर्य के 12 मुख्य नाम कलाएं
है ----
सूर्य नमस्कार के 12 मंत्र इस प्रकार है -
1. ऊँ मित्राय नमः
2. ऊँ रवैये नमः
3. ऊँ सूर्याय नमः
4. ऊँ भानवे नमः
5. ऊँ खगाय नमः
6. ऊँ पुषणे नमः
7. ऊँ हिरण्यगर्भाय नमः
8. ऊँ मरिचये नमः
9. ऊँ आदित्याय नमः
10. ऊँ सवित्रे नमः
11. ऊँ अर्काय नमः
12. ऊँ भास्कराय नमः।
विधि - दरी या
कम्बल पर सूर्य की ओर मुंह करके खड़े हो जाए। एड़ी पंजे मिलाएं। दोनों हाथ जोडें़।
हाथों के दोनों अंगुठे कंठ कुप पर रखें। कोहनियों से चेस्ट दबा दें। आंखें बद
करें। मन ही मन सूर्य देवता का नमस्कार करें। उनसे बल, बुद्वि, विवेक, एकाग्रता, तेजस्या तदरुस्ती मांगे या याचना करें। उनके
नाम मंत्रें का उच्चारण करें। धीरे-धीरे आंखें खोलें।
हाथों को गोलाकार घुमाते हुए उपर उठाएं। नाक से
श्वास लेते हुए फिर दोनों हाथ जोडकर श्वास निकालते हुए आगे की ओर झुकें। माथा
घुटनों से लगाएं, तथा हथेलियां पैरों के पास रखें। एक पैर पिछे ले जाएं। आगे
वाला घुटना मुडा़ हो पिछे वाला घुटना सीधा। दोनों हथेलियां आगे वाले पैर के दोनों
ओर। अब श्वास भरते हुए हाथ चेस्ट उपर की ओर उठाएं। सीना बाहर की ओर आए। श्वास
निकालते हुए फिर दोनों हाथ वापस ले आएं। अब दोनों पैरों को कुदते उछलकर हुए बदलें।
अब फिर श्वास भरते हुए दोनों हाथों को उपर की ओर उठाएं। श्वास निकालते हुए हाथों
को वापस स्थिति ले आएं। अब दोनाें पैर पिछे ले जाइएं। कमर उपर उठाए। पैरों की
एड़ियां जमीन से लगाएं। घुटने सीधा करें। श्वास भरते हुए इस प्रकार दंड भरें कि
चेस्ट चार आंगुल जमीन से उपर उठ जाए। फिर कोेहुनी सीधी करें। गर्दन पीछे ले जाएं, सीना उभारें।
श्वास निकालते हुए दंड को उसी प्रकार वापस ले आएं। दोनों पैर उछालकर दोनों हाथों
के बीच में ले आएं। श्वास निकालते हुए माथा घुटनों से लगाएं। घुटने सीधो रखें।
श्वास भरते हुए खडे़ हो जाए। दोनों हाथों को गोलाकार घुमाकर फिर से हाथ जोड़ लें और
सुर्य देवता को प्रेमपूर्वक नमस्कार करें। इस विधियों को एक से अधिक बार किया जा
सकता है।
लाभ - सूर्यनमस्कार से फेफडे में शुद्व वायु का
संचार होता है। फेफडे़ के रोग मिटते हैं। पसलियों के रोग मिट जाते हैं। शरीर सुर्य
के समान तेजस्वी हो जाता है। सुर्यनमस्कार करने वाले को लोग तेजस्वी के रुप में
देखते है। चर्म रोग, कुष्ट रोग भी मिट जाते हैं। सुर्यनमस्कार से सभी अंगों का
व्यायाम हो जाता है। शरीर चुस्त एवं फुर्तिला बनता है। रीढ़ की हडी लचीली बनती है
जिससे रीढ़ संबंधि रोग नहीं होते। प्रातः काल करने से विटामिन और एनर्जी मिलती है।
सुर्यनमस्कार से ओज, तोज और ताजगी मिलती है। नजला-जुकाम,
खांसी आदि जल्दी ठीक होते
है। लो ब्लड प्रेसर वालों के लिए बहुत ही अच्छा है। इससे शारीरीक, मानसिक एवं
आध्यात्मिक लाभ मिलता है। सुर्यसाधना सभी योगाभ्यासियों के लिए आवश्यक है। अपच, गैस आदि ठीक हो
जाते है। गठिया, जोेड़ों के दर्द, मेें बड़ा फायदेमंद है। सूर्यनमस्कार करने से
जांडिस, पिलिया आदि हाने की संभावना नहीं रहती। सूर्यसाधना करने वाले साधक तीनों तापों
(दैहिक, दैविक, भौतिक)नष्ट कर देता है। सूर्यदेवता के प्रसन्न होने पर
सिद्वियां प्राप्त होती है। इसके अभ्यास से सीना चौड़ा होता है। सम्पुर्ण भुजा
सुन्दर हेा जाती है। कमर पतली एवं जंघा, पिंडली और पैर अति सुन्दर हो जाते है। कब्ज को
दुर करके जठराग्निी को प्रदीप्त करता है।
उदर संबंधि
विकारों का नाश करके उदर की चर्बी को कम कर देता है। जिन्हे आलस्य और अति निद्रा
आती हो उन्हे जरुर करना चाहिए। एकाग्रता बढ़ती है। मेरुदंड लचीला होता है। क्रोधा
शांत होता है। जोडों का दर्द दुर होता है। रक्त का संचार होता है। कब्ज दुर होती
है। सीना मजबुत होता है। स्मरण शक्ति बढ़ती है। शरीर लचीला होता है। मोटापा कम होता
है। कमर के दाष दुर होते है ।
सावधानियांॅ -
हाई ब्लडप्रेसर और ह्रदय रोगियों को नहीं करवाना चाहिए। अस्थमा, हाइड्रोसिल, हार्निया वालों
को नहीं करना चाहिए। प्रातःकाल सुर्योदय के समय, दस्त एवं बुखार में सुर्यनमस्कार नहीं करना
चाहिए। अशुद्व अवस्था, धॅुंआ वाली या गंदी हवा या अशुद्व वातावरण में नहीं करनी
चाहिए। सूर्य के विपरित मुंह करके नहीं करनी चाहिए।
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