गोबर से खाद बनाने के परंपरागत तरीके-
कृषि वैज्ञानिकों ने गोबर से खाद बनाने के परंपरागत तरीके के स्थान पर नया तरीका सुझाया है। इस विधि से गोबर से अच्छी खाद डेढ़ से दो महीने में बनकर तैयार हो जाती है। सघन फसल चक्र अपनाने से भूमि से बहुत जरूरी पोषक तत्वों के अत्यधिक दोहन से भूमि स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। भूमि में पोषक तत्वों की कमी से उत्पादन में निरंतर गिरावट, फसलों की गुणवत्ता में कमी, मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव, पौष्टिक चारे की कमी से पशुओं में बांझपन आदि नुकसान हो रहे हैं।
खंड कृषि अधिकारी डा. महावीर सिंह मलिक ने बताया कि भूमि में लगातार आर्गेनिक कार्बन का स्तर गिरता जा रहा है। इसलिए कार्बनिक पदार्थो की पूर्ति के लिए कार्बनिक खाद के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, कंचुआ खाद, हरी खाद, खेतों की परती रखना एवं फसलचक्र में दलहनी फसलों को शामिल करना जरूरी हो गया है।
ोबर खाद तैयार करने की नई विधि : गोबर के ढेर या कुरड़ी को सभी तरफ के किनारों को लगभग आधा या एक फुट ऊंचा उठाकर प्यालीनुमा बना लेते हैं। इसके बाद इसमें बाल्टियों या पाइप से इतनी मात्रा में पानी डाला जाता है कि सारा गोबर का ढेर ऊपर से नीचे तक गीला हो जाए। पानी से गच करने के लिए ढेर में जगह-जगह लकड़ी या सरिया से छेद बना देते हैं। इसके बाद इस ढेर पर सिर्फ काले रंग की पालीथीन या मोमजामा की शीट से पूरी तरह ढक दिया जाता है। इस दौरान सावधानी रखी जाए कि पालीथीन कटे या फटे नहीं और आवारा पशु ढेर पर न चढ़ सकें। थोड़े से समय में ही अच्छी खाद तैयार हो जाती है।
नई विधि की विशेषता : इस प्रकार से तैयार खाद पोषक तत्वों से भरपूर, 25 प्रतिशत नमी युक्त, भुरभुरी, सस्ती व दुर्गध रहित होती है। परंपरागत खाद तैयार करने में पांच से आठ माह लगते हैं, जबकि इस विधि से डेढ़ से दो माह में ही खाद तैयार हो जाती है। खाद में खरपतवारों के बीज गल सड़कर नष्ट हो जाते हैं। पालीथीन से ढके होने से मिथैन गैस वायुमंडल में नहीं मिलती, जिससे पर्यावरण शुद्ध रहता है। खाद में दीमक भी नहीं लगती। उचित मात्रा में तापमान व नमी मिलने से सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता पुरानी विधि की तुलना में तीव्र रहती है। अच्छी तरह से गलने व सड़ने के कारण पोषक तत्व शीघ्र व संतुलित मात्रा में फसल को मिलते हैं।
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