Skip to main content

ध्यान (मेडिटेशन)

 ध्यान (मेडिटेशन) एक प्राचीन अभ्यास है जो मन और शरीर को शांति प्रदान करता है। नियमित ध्यान से मानसिक तनाव कम होता है, एकाग्रता बढ़ती है, और आंतरिक शांति का अनुभव होता है। यदि आप ध्यान करना चाहते हैं ताकि आपके शरीर और मन को शांति मिले, तो निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:


1. उपयुक्त वातावरण चुनें: एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें जहाँ आपको कोई बाधा न हो। यह स्थान आपको ध्यान के दौरान एकाग्रता बनाए रखने में मदद करेगा。 


2. आरामदायक मुद्रा अपनाएँ: कुर्सी, कुशन या फर्श पर इस तरह बैठें कि आप सहज महसूस करें। अपनी पीठ सीधी रखें, कंधे ढीले छोड़ें, और हाथों को गोद में या घुटनों पर रखें। यह मुद्रा ध्यान के दौरान शरीर को स्थिरता और आराम देती है。 


3. सांसों पर ध्यान केंद्रित करें: अपनी आँखें बंद करें और अपनी सांसों की गति पर ध्यान दें। सांस लेते और छोड़ते समय उसकी अनुभूति को महसूस करें। जब भी आपका मन भटके, धीरे से उसे वापस सांसों पर केंद्रित करें। यह प्रक्रिया मन को वर्तमान क्षण में लाने में सहायक होती है。 


4. विचारों का निरीक्षण करें: ध्यान के दौरान, विभिन्न विचार मन में आ सकते हैं। उन्हें रोकने की कोशिश न करें; बस उन्हें बिना किसी निर्णय के स्वीकार करें और धीरे से अपना ध्यान वापस सांसों पर लाएँ। यह अभ्यास मानसिक स्पष्टता और शांति बढ़ाने में मदद करता है。 


5. ध्यान की अवधि निर्धारित करें: शुरुआत में 5-10 मिनट से ध्यान करना प्रारंभ करें और धीरे-धीरे इस अवधि को बढ़ाएँ। नियमित अभ्यास से ध्यान की गहराई और लाभ बढ़ते हैं。 


6. नियमितता बनाए रखें: ध्यान का अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए इसे अपनी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाएँ। नियमित अभ्यास से मन और शरीर में स्थायी शांति और संतुलन स्थापित होता है。 


7. विभिन्न ध्यान तकनीकों का अन्वेषण करें: विभिन्न ध्यान विधियाँ उपलब्ध हैं, जैसे माइंडफुलनेस मेडिटेशन, विपश्यना, और प्राणायाम। अपने लिए उपयुक्त तकनीक का चयन करें और उसमें प्रवीणता प्राप्त करें।


ध्यान के नियमित अभ्यास से आप मानसिक शांति, शारीरिक आराम, और आंतरिक संतुलन का अनुभव कर सकते हैं। यह न केवल तनाव को कम करता है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार लाता है।


Comments

Popular posts from this blog

सूक्ष्म व्यायाम, स्थूल व्यायाम

  सूक्ष्म व्यायाम                 उच्चारण स्थल तथा विशुद्व चक्र की शुद्वी   (ज्ीतवंज ंदक अवपबम)-- सामने देखते हुए श्वास प्रश्वास करना है। प्रार्थना - बुद्वी तथा घृति शक्ति विकासक क्रिया (उपदक ंदक ूपसस चवूमत कमअमसवचउमदज) - शिखामंडल में देखते हुए श्वास प्रश्वास की क्रिया करना है। स्मरण शक्ति विकासक (उमउवतल कमअमसवचउमदज) - डेढ़ गज की दुरी पर देखते हुए श्वास प्रश्वास की क्रिया करें। मेघा शक्ति विकासक(प्दजमससमबज कमअमसवचउमदज) - ठुढ़ीे कंठ कुप से लगाकर ग्रीवा के पीछे गढ़ीले स्थान पर ध्यान रखकर श्वास प्रश्वास करें। नेत्र शक्ति विकासक (मलम ेपहीज) - दोनों नेत्रें से भ्रूमध्य उपर आशमान की तरफ देखें। कपोल शक्ति विकासक(बीमबा तमरनअमदंजपवद) -   मुख को कौए की चोंच की भाती बनाकर वेग से श्वास अंदर खीचें। ठुढ़ी को कंठ-कुप से लगाकर नेत्र बंद करके कुंभक करें। कर्ण शक्ति विकासक (भ्मंतपदह चवूमत कमअमसवचउमदज) - इसमें नेत्र , कान , नाक , मुख बंद करते हुए पुनः मुख को कौए की चोंच के समान बनाकर वायु खींचकर गाल फुलाक...

स्वरोदय ज्ञान

  स्वरोदय ज्ञान   श्वास लेन और छोड़ने को स्वरोदय ज्ञान कहते हैं। सम्पूर्ण योग शास्त्र , पुराण , वेद आदि सब स्वरोदय ज्ञान के अन्तर्गत आते हैं। ये स्वरोदय शास्त्र सम्पूर्ण शास्त्रें में श्रेष्ठ हैं और आत्मरूपी घट को प्रकाशित दीपक की ज्योति के समान है। शरीर पांच तत्वों से बना है और पांच तत्व ही सूक्ष्म रूप से विद्यमान है। शरीर में ही स्वरों की उत्पति होती है जिसके ज्ञान से भूत , भविष्य , वर्तमान तीनों कालों का ज्ञान होता है। इस ज्ञान को जान लेने के बाद ऐसी अनेकानेक सिद्वियां आ जाती है साधक इसकी सहायता से अपने शरीर (आत्मा) को स्वास्थ्य एवं शसक्त बना सकता है। स्वरोदय दो शब्दों   के मेल से बना है। स्वर $ उदय = स्वरोदय। स्वर शब्द का अर्थ है निः श्वास एवं प्रश्वास अर्थात् श्वास लेना और छोड़ना। और उदय शब्द का तात्पर्य   है कि इस समय कौन सा स्वर चल रहा है और ज्ञान शब्द का अर्थ है जानकारी से है कि किस समय किस स्वर से शुभ एवं अशुभ कार्य किए जाए। जो फलीभुत हो। अर्थात् हम कह सकते हैं कि स्वरोदय ज्ञान वह विज्ञान है जिसे जानकर साधक अपनी शुभ और अशुभ कार्य करने में सफल होता है...

पुदीने

 पुदीने के तेल का प्रयोग -  डायरिया, सूजन, कब्ज और अत्यधिक गैस सहित इरिटेबल बाउल सिंड्रोम आईबीएस के लक्षणों में सुधार कर सकता है। पुदीने में एंटीस्पास्मोडिक गुण होते हैं, जो आपके बृहदान्त्र को अनैच्छिक मांसपेशी संकुचन होने से रोकता है, जो पेट में दर्द में योगदान कर सकते हैं। जर्नल ऑफ क्लिनिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में 2014 में प्रकाशित एक समीक्षा में, आईबीएस से पीड़ित लोग जो पेपरमिंट ऑयल लेते थे, उन्होंने उन लोगों की तुलना में अपने लक्षणों में महत्वपूर्ण सुधार देखा, जो इस तेल का प्रयोग नहीं करते थे। पेट में गैस न बने इस समस्या से बचने के लिए आप बाजार में बिकने वाले पुदीना के कैप्सूल भी खरीद सकते हैं और अपने भोजन को खाने के लिए बैठने से लगभग एक घंटे पहले इनका सेवन कर सकते हैं। नियमित रूप से ऐसा करने पर आपके पेट में गैस बनने की समस्या खत्म हो जाएगी।  इसे भी पढ़ेंः पेट के दर्द को हर बार एसिडिटी से न जोड़े, जानें गैस के अलावा पेट दर्द के 5 बड़े कारण अप्लाई हीट कुछ अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है कि हीटिंग पैड का उपयोग करने से अत्यधिक गैस के कारण पेट में दर्द से राहत मिल सकती...