Skip to main content

नींबू की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

 

नींबू की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

नींबू की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

लेमन व लाइम नींबू वर्गीय फलों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है| भारतवर्ष में लेमन व लाइम की बागवानी लगभग हर क्षेत्र में की जा रही है| नींबू के उत्पादन में आन्ध्रप्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा व पंजाब का मुख्य योगदान है| वर्ष भर फलों की उपलब्धता, प्रसंस्करण उद्योग में उपयोगिता विटामिन व प्रति आक्सीकारक की प्रचुरता एवं उपभोक्ताओं की स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता नींबू को और अधिक महत्वपूर्ण बनाते हैं|

वैज्ञानिक पद्धति से बाग प्रबंधन का अभाव नींबू के उत्पादन व गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और बाग समय से पहले ही नष्ट हो जाते हैं| अतः लम्बे समय तक व्यावसायिक उत्पादन लेने के लिए जलवायु के अनुसार किस्मों का चुनाव तथा उचित बाग प्रबंधन अति आवश्यक है| इस लेख में कृषकों की जानकारी के लिए नींबू की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें का विस्तृत उल्लेख किया गया है| नींबू वर्गीय अन्य फसलों की बागवानी वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की खेती कैसे करें

उपयुक्त जलवायु

नींबू के उत्पादन के लिए गर्म, हल्की नमी युक्त व तेज हवा रहित जलवायु सबसे उपयुक्त होती है| गर्मियों में अधिक तापमान व सिंचाई का अभाव जुलाई से अगस्त में आने वाली नींबू की फसल पर कुप्रभाव डालते हैं| जबकि जहां ज्यादा बारिश होती हो ऐसे क्षेत्रों में रोग और किट की वजह से इसकी उचित पैदावर नही मिलती है|

भूमि का चयन

नींबू के सफल उत्पादन के लिए गहरी (1.5 मीटर तक कड़ी परत रहित), लवण रहित, अच्छे जल निकास वाली हल्की या मध्य दोमट भूमि जिसका पी एच मान 5.8 से 6.8 के मध्य हो, उत्तम मानी जाती है| ऐसी मृदाएं जिनका जलस्तर बहुत ऊंचा हो और समय-समय पर घटता-बढ़ता हो, नींबू के उत्पादन के लिए अनुपयुक्त मानी जाती है|

उन्नत प्रजातियां

लेमन- यूरेका, लिस्बन, विल्लाफ्रेन्का, लखनऊ सीडलेस, कागजी कलां, पंत लेमन- 1 आदि प्रमुख है|

लाइम- प्रमालिनी, विक्रम, सांई शरबती, जयदेवी, चक्रधारी, सीडलेस, ताहिती, ए आर एच- 1 आदि प्रमुख है|

नर्सरी तैयार करना

नींबू की नर्सरी के लिए थोड़ी ऊंचाईवाली, उपजाऊ और अच्छे नीतारवाली जमीन का चयन करें| उस में 2 x 1 मीटर की 15 सैंटीमीटर ऊंची उठी हुई क्यारियाँ बनाएँ| हर क्यारियों में आवश्यकतानुसार गोबर की खाद मिलाये और बीज उपचार हेतु एक किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थायरम या कैप्टान से उपचारित करे| बीजों को दो कतारों के बीच 15 सैंटीमीटर और दो बीज के बीच 5 सैंटीमीटर अंतर रखकर 1 से 2 सैंटीमीटर गहराई पे जुलाई से अगस्त महीने में बुवाई करें| सर्दियों में 5 से 7 दिनो पर और गर्मियों में 4 से 5 दिनो पर नर्सरी की सिंचाई करे, जरूरत के हिसाब से खरपतवार व रोग किट का उपाय करें|

दूसरी नर्सरी में रोपाई- पौधे एक साल के हो तब उनकी दूसरी नर्सरी में रोपाई करे| इस समय कमजोर, पतले और रोगी पौधे निकाल दें| पौधे की 15 से 20 सैंटीमीटर ऊंचाई की शाखाएं काट दे| पौधे के चयन के बाद दो कतार के बीच 30 सैंटीमीटर और दो पौधे बीच 15 सैंटीमीटर अंतर रखकर रोपाई करें| दो साल की उम्र के लगभग 60 सैंटीमीटर ऊंचाई और ज्यादा तंतुमूल वाले पौधे रोपाई हेतु अच्छे माने जाते है| आवश्यक पोषक तत्व के साथ जिंक सल्फेट और फेरस सल्फेट 10 लीटर पानी में 50 ग्राम के हिसाब से मिलाकर छिड़काव करने से पौधों का विकास अच्छा होता है|

प्रवर्धन तकनीक

नींबू में बहुभ्रूणता पायी जाती है, इसलिए बीज से सफलतापूर्वक प्रवर्धित किया जा सकता है| लेकिन बीज द्वारा तैयार किये गये पौधे प्रायः देर से फल देते है| इसलिए जुलाई से अगस्त में गूटी द्वारा भी आसानी से नये पौधे तैयार किये जा सकते हैं, जो शीघ्र फलन में आ जाते हैं| जहां फाइटोफ्थोरा सड़न की समस्या हो नींबू के पौधे कालिकायन विधि द्वारा प्रतिरोधी मूलवृत पर तैयार करने चाहिए|

किसान भाई यदि स्वयं पौधे तैयार नही करते है, तो विश्वसनीय और प्रमाणित नर्सरी से ही पुरे तथ्यों के साथ पौधे लें, और रोपाई के 15 से 20 दिन पहले पौधे लेकर बागवानी वाली जगह रख ले, इससे पौधों को वहां के वातावरण में ढलने का समय मिल जाता है| प्रवर्धन तकनीक की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन कैसे करें

पौधा रोपण

जिस खेत में नींबू के पौधों का रोपण करना हो उसकी अच्छी प्रकार सफाई करके जोतकर समतल कर लेना चाहिए| तत्पश्चात 5.0 मीटर की दूरी पर 0.75 x 0.75 x 0.75 मीटर के गड्ढ़े रोपण से एक माह पूर्व खोदकर कुछ दिनों के लिए खुले छोड़ देने चाहिए| इसके बाद सड़ी हुई खाद व मिट्टी को बराबर मात्रा में मिलाकर गड्ढे भर देने चाहिए| यदि रोपण क्षेत्र में दीमक का प्रकोप हो तो गडढे में पौधे लगाने से पूर्व 2.0 मिलीलीटर क्लोरोपाइरीफोस का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर गड्ढे को उपचारित कर देना चाहिए|

गड्ढे भरने के बाद नींबू के पौधों को किसी विश्वसनीय स्रोत से मिट्टी की पिण्डी समेत अवांछित शाखाओं की छंटाई करके लाये तथा कम से कम समय में तैयार किये गये गड्ढों के बीचों बीच नर्सरी वाली गहराई पर सीधी अवस्था में रोपित करने के बाद मिट्टी को अच्छी प्रकार दबायें| रोपण का कार्य शाम के समय ही करें तथा रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई कर देनी चाहिए| जहां तक संभव हो, नींबू का रोपण जुलाई से अगस्त में करना चाहिए, किन्तु यदि सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो तो मार्च से अप्रैल में भी नींबू का रोपण सफलतापूर्वक किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- संतरे की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

पोषण प्रबन्धन

वर्ष भर फल उत्पादन देने के कारण नींबू को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है| अतः खाद व उर्वरक की उचित मात्रा व समय पर प्रयोग करना अनिवार्य होता है| नींबू के वृक्षों में खाद एवं उर्वरकों की मात्रा इस प्रकार देनी चाहिए, जैसे-

पौधे की आयु (वर्ष)गोबर खाद (किलोग्राम)नाइट्रोजन (ग्राम)फास्फोरस (ग्राम)पोटाश (ग्राम)1201501251002253002502003304503753004406005004005507506255005 वर्ष से अधिक60900750600

कार्बनिक खाद की पूरी मात्रा दिसम्बर के अन्त में तथा नत्रजन व पोटाश की आधी मात्रा फरवरी से मार्च व शेष मात्रा जून से जुलाई में डालनी चाहिए| फास्फोरस की पूरी मात्रा फरवरी से मार्च में डालनी चाहिए| खाद व उर्वरकों को तने से 30 सेंटीमीटर दूर तथा पौधे की छतरी के फैलाव के अन्दर डालकर मिट्टी में मिलाकर सिंचाई कर देनी चाहिए| नींबू में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण और निदान यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय बागों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण एवं उनके निदान के उपाय

सिंचाई प्रबन्धन

नींबू के पौधे वर्ष भर फल देते हैं| अतः इनको पूरे वर्ष पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है| नींबू के बागों में शरद ऋतु में एक माह व ग्रीष्म ऋतु में साप्ताहिक अंतराल पर सिंचाई आवश्यक होती है| सिंचाई पूर्व वृक्षों के तने पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, ताकि सिंचाई करते समय पानी तने के सम्पर्क में न आये| वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती किन्तु जल निकास का उचित प्रबंध अनिवार्य होता है|

यदि टपक सिंचाई प्रबंध हो तो जमीन, ऋतु और पौधे का विकास ध्यान में रखकर हर रोज 30 से 50 लीटर पानी दें| प्रति पौधा 4 ड्रिपर रखकर जनवरी में 2 घंटे, फरवरी में 3 घंटे, मार्च में 4 घंटे, अप्रैल से जून में 5 घंटे, जुलाई से सितम्बर में 2 घंटे अगर बरसात नहीं हो तो और अक्टूबर से दिसंबर में 3 घंटे चलाने की सलाह दी गई है|

काट-छांट

प्रायः नींबू के वृक्षों में नियमित काट-छांट की आवश्यकता नहीं पड़ती लेकिन शुरूआत में सुदृढ ढांचा तैयार करना आवश्यक होता है| तने पर 60 सेंटीमीटर तक की ऊंचाई तक किसी शाखा को न बढ़ने दें तथा प्रति वर्ष दिसम्बर माह में सूखी व रोग ग्रसित शाखाओं को काटकर निकाल देना चाहिए|

अंतरवर्ती फसलें

बाग लगाने के शुरू के वर्षों में पौधो के बीच काफी जगह खाली रह जाती है| इस खाली जगह में कुछ फसलें उगाई जा सकती है| जिससे कृषकों को शुरू के वर्षो में आमदानी हो सके| अंतरवर्ती फसलों का चुनाव वहाँ की जलवायु, मृदा, वर्षा की मात्रा और उसके वितरण तथा सिंचाई की सुविधा पर निर्भर करता है| इसके के लिए चुनी गई फसलें उथली जड़ वाली, शीघ्र पकने वाली तथा अच्छी पैदावार देने वाली होनी चाहिए|

इसके अतिरिक्त ये फसलें भूक्षरण व जल रोकने की क्षमता रखती हो| ये फसलें जल व पोशक तत्वो के लिए फलवृक्षों की प्रतिस्पर्धी नहीं होनी चाहिए| एसी उपयोगी फसलों में पपीता, स्ट्रोबेरी, सब्जिया, चारे की फसलें तथा दाल की फसलें उल्लेखनीय है| बाग में भारी फसलें लेने से बचना चाहिए|

खरपतवार नियंत्रण

जमीन को नरम और भूरभूरी रखने हेतु साल में 2 से 3 बार आंतर जुताई करे| अच्छी नीतार वाली जमीन में कम से कम आंतर जुताई करे, जिससे जड़ को नुकसान न हो और जुताई से रोग व किट भी कम लगते है| इसलिए बाग को खरपतवार मुक्त रखें|

फलों का फटना

नींबू में जुलाई से अगस्त में पकने वाले फलों का फटना एक गंभीर समस्या है| फटे हुए फल शीघ्र ही बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं और उपयोग के लायक नहीं रहते जिससे उत्पादक को काफी नुकसान उठाना पड़ता है| फल फटने से रोकने के लिए उचित समय पर सिंचाई करें तथा 10 मिलीग्राम जिब्रेलिक अम्ल प्रति लीटर पानी या 40 ग्राम पोटेशियम सल्फेट प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव अप्रैल, मई तथा जून में करें| इसके अतिरिक्त अप्रैल से जून के बीच वृक्षों के नीचे पलटवार बिछाना भी फलों के फटने को रोकने में सहायक होता है|

फल व फूलों का सड़ना

नींबू में फल व फूल झड़ना एक आम समस्या है| जिससे फल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| अतः संतुलित मात्रा में सही समय पर पोषक तत्वों (कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर, जस्ता तथा बोरोन) का प्रयोग करें तथा 2,4- डी, 10 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|

कीट व रोग नियंत्रण

माहू- मुलायम शाखाओं पर आने वाली पत्तियों तथा टहनियों का मुड़ना इसके प्रमुख लक्षण है|

नियंत्रण- 1.0 से 1.5 मिलीलीटर इमीडाक्लोप्रिड का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फरवरी, अगस्त व अक्टूबर के महीनों में छिड़काव करें|

लीफ माइनर- नींबू की पत्तियों पर सफेद रंग की सर्प की आकृति की रेखाओं का बनना लीफ माइनर के प्रमुख लक्षण है|

नियंत्रण- प्रभावित पत्तियों को तोड़कर जला दें और 1.0 से 1.5 मिलीलीटर इमीडाक्लोप्रिड का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर या सक्सेस 0.5 से 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर मार्च, अप्रैल व जुलाई से अगस्त में छिड़काव करें|

कैंकर- नींबू की शाखाओं, पत्तियों व फलों पर भूरे रंग के धब्बे बनना व धीरे-धीरे शाखाओं का मरना इस रोग के लक्षण है|

नियंत्रण- प्रभावित भागों को काटकर जलायें तथा 0.1 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन + 0.05 ग्राम कापर सल्फेट का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फरवरी, अक्टूबर व दिसम्बर में छिड़काव करें|

फाइटोफ्थोरा- नींबू में जड़ों व त्वचा का सड़ना, गोंद निकलना, वृक्षों का मरना इस रोग के प्रमुख लक्षण है|

नियंत्रण- तने को साफ रखें, गोंद को हटाने के बाद बोर्डो लेप लगायें| पौधों के चारों तरफ रिडोमिल एम जेड (2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) या एलीर (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का घोल डालें|

स्केब- नींबू की पत्तियों, शाखाओं व फलों पर हल्के पीले रंग के उभार लिए धब्बों का बनना स्केब के लक्षण है|

नियंत्रण- कॉपर आक्सीक्लोराइड (3.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) का घोल जून से अगस्त के बीच 20 दिन के अंतराल पर छिड़कें| नींबू में कीट एवं रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबूवर्गीय फसलों में समन्वित रोग एवं कीट नियंत्रण कैसे करें

फलों कि तुड़ाई

नींबू की परिपक्व होने पर ही तुड़ाई करनी चाहिए| खट्टे नींबू के पौधों में एक साल में कई बार फल लगते है और इसके फलो को तैयार होने में लगभग 6 माह का समय लगता है| जब फल पक कर हरे रंग से पीले रंग के हो जायें, तब उसकी तुड़ाई शुरू कर दी जाती है| फलों को तोड़ते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि फलों का साथ-साथ थोडा हिस्सा तनों और पत्तियों का भी तोड़ लिया जाए ताकि फल के छिलके को कोई नुकसान न हो|

पैदावार

नींबू के पौधों में 1 साल के बाद से ही छोटे-छोटे फल लगने लगते है, लेकिन वे किसी काम के नहीं होते है| 3 से 4 साल के होने पर पौधों में अच्छी मात्र में नींबू फल लगने लगते है, और 5 से 6 साल की उम्र वाले प्रति पौधो से सालाना 2500 से 6,000 नींबू के फल प्राप्त किये जा सकते है|

भंडारण- नींबू को सामान्य तापमान पर 8 से 10 दिन तक भण्डारित किया जा सकता है| नींबू के फलों को 9 से 10 डिग्री सेल्सियस तापमान व 85 से 90 प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता पर 6 से 8 हफ्ते तक भण्डारित किया जा सकता है|

Comments

Popular posts from this blog

सूक्ष्म व्यायाम, स्थूल व्यायाम

  सूक्ष्म व्यायाम                 उच्चारण स्थल तथा विशुद्व चक्र की शुद्वी   (ज्ीतवंज ंदक अवपबम)-- सामने देखते हुए श्वास प्रश्वास करना है। प्रार्थना - बुद्वी तथा घृति शक्ति विकासक क्रिया (उपदक ंदक ूपसस चवूमत कमअमसवचउमदज) - शिखामंडल में देखते हुए श्वास प्रश्वास की क्रिया करना है। स्मरण शक्ति विकासक (उमउवतल कमअमसवचउमदज) - डेढ़ गज की दुरी पर देखते हुए श्वास प्रश्वास की क्रिया करें। मेघा शक्ति विकासक(प्दजमससमबज कमअमसवचउमदज) - ठुढ़ीे कंठ कुप से लगाकर ग्रीवा के पीछे गढ़ीले स्थान पर ध्यान रखकर श्वास प्रश्वास करें। नेत्र शक्ति विकासक (मलम ेपहीज) - दोनों नेत्रें से भ्रूमध्य उपर आशमान की तरफ देखें। कपोल शक्ति विकासक(बीमबा तमरनअमदंजपवद) -   मुख को कौए की चोंच की भाती बनाकर वेग से श्वास अंदर खीचें। ठुढ़ी को कंठ-कुप से लगाकर नेत्र बंद करके कुंभक करें। कर्ण शक्ति विकासक (भ्मंतपदह चवूमत कमअमसवचउमदज) - इसमें नेत्र , कान , नाक , मुख बंद करते हुए पुनः मुख को कौए की चोंच के समान बनाकर वायु खींचकर गाल फुलाक...

चलती कार को ढलान (उतार) पर न्यूट्रल करना या क्लच दबाकर चलाना न सिर्फ तकनीकी रूप से गलत है, बल्कि जानलेवा भी हो सकता है

 चलती कार को ढलान (उतार) पर न्यूट्रल करना या क्लच दबाकर चलाना न सिर्फ तकनीकी रूप से गलत है, बल्कि जानलेवा भी हो सकता है। वैज्ञानिक और यांत्रिक (Mechanical + Safety) दृष्टिकोण से विस्तारपूर्वक समझते हैं: 🚫 1. न्यूट्रल में गाड़ी को उतारने के नुकसान: 🔧 तकनीकी दृष्टिकोण: न्यूट्रल में डालने का मतलब है कि इंजन का कार के पहियों से कोई संबंध नहीं होता। यानी, इंजन ब्रेकिंग नहीं होती। इससे गाड़ी पूरी तरह गुरुत्वाकर्षण (gravity) पर चल रही होती है। स्पीड तेजी से बढ़ती है, लेकिन कंट्रोल कम होता है। ⚠️ खतरनाक परिणाम: अगर अचानक मोड़ आए या आगे कोई गाड़ी रुकी हो तो कार को रोकने में बहुत समय और दूरी लगती है। ब्रेक फेल हो जाए तो आपके पास कंट्रोल का कोई और साधन नहीं रहता। न्यूट्रल में गाड़ी स्लो नहीं होती, बल्कि तेजी से फिसलती है, जिससे एक्सीडेंट का खतरा बढ़ जाता है। ✅ इंजन ब्रेकिंग क्या होती है और क्यों जरूरी है? जब आप गाड़ी को गियर में रखते हैं, तो इंजन भी व्हील को रोकने में मदद करता है। इससे ब्रेक पर लोड कम पड़ता है और वाहन आसानी से नियंत्रित रहता है। 🚫 2. ढलान पर क्लच दबाकर गाड़ी चलाना क्यों खत...

मैनुअल कार ड्राइविंग: गियर, क्लच, ब्रेक और रेस पेडल:

  English swap_horiz Hindi Source text clear 1,785  / 5,000 Translation results Translation result मैनुअल कार ड्राइविंग: गियर, क्लच, ब्रेक और रेस पेडल: 🚗 1. क्लच पेडल (बायां पेडल) उद्देश्य: इंजन को पहियों से जोड़ता या अलग करता है। पूरी तरह से दबाएँ: गियर बदलते समय (पहला से पाँचवाँ, या रिवर्स)। धीरे-धीरे छोड़ें: स्टॉलिंग से बचने के लिए पहले गियर में शुरू करते समय। क्लच पर न चढ़ें: शिफ्ट करने के बाद पैर दूर रखें। ⚙️ 2. गियर शिफ्टिंग गियर लीवर की स्थिति: आमतौर पर पहला से पाँचवाँ + रिवर्स (R)। पैटर्न उदाहरण: 1 3 5 |---|---| 2 4 R गियर का उपयोग: पहला गियर: स्टॉप से ​​आगे बढ़ना, भारी ट्रैफ़िक। दूसरा गियर: धीमी गति से मोड़, धक्के। तीसरा गियर: शहर की गति (25-35 किमी/घंटा)। चौथा गियर: 40-50 किमी/घंटा। पांचवां गियर: हाईवे के लिए 50+ किमी/घंटा। रिवर्स: पीछे की ओर बढ़ना। 🏁 3. रेस पेडल / एक्सीलरेटर (राइट पेडल) फंक्शन: इंजन की शक्ति और गति बढ़ाता है। धीरे-धीरे दबाएँ: पहले गियर में क्लच छोड़ते समय। उच्च गियर में उपयोग करें: गति बनाए रखने या आगे निकलने के...